About Us/हमारे बारे में
स्नेही वैष्णवो,सबन कु भगवत्स्मरण.
ये वेबसाईट बनावे को उद्देश्य केवल और केवल श्रीमहाप्रभुजी के द्वारा बनाए गए सिद्धान्तन कु आप सभी वल्लभीय सृष्टि तक पहोंचानो है.वैसे तो बहोत सारी वेबसाईट खुली भई हैं और सबन ने अपने अपने प्रकार सू अपनी बात कही है,परन्तु श्रीवल्लभाचार्यजी को उद्देश्य क्या केवल मनोरथ और प्रसाद में ही सिमट के रह जानो है ?बिल्कुल नहीं...
आप सभी देख सको हो कि मनोरथ,प्रसाद वितरण और यात्रा प्रचार की ही अधिकतर गतिविधियाँ देखवे कू मिले हैं,मोकू अन्य कोई के बारे में अन्यथा विधान करवे में ना तो रूचि है और यासू ना ही कोई प्रयोजन सिद्ध हो पायेगो.मेरो आशय श्रीमहाप्रभुजी द्वारा श्रम लेके बनाए गए पुष्टिभक्तिमार्गीय ग्रन्थन के दिन प्रतिदिन शिथिल होती पठन-पाठन की प्रक्रिया कु पुनः जीवित करनो है,क्योंकि श्री हरिरायजी समझावे हैं कि सत्संग तो अवश्य ही करनो है पर सत्संगार्थ सत् और असत् को निर्णय तो करनो ही पडेगो.
और कौन सत् है और कौन असत् ? याके विचार में एक सीधी सी बात समझो कि जो श्रीमहाप्रभुजी की वाणी कु यथा शक्य सच्चाई सू जीवन में उतारवे को दंभ रहित प्रयत्न कर रह्यो होय वो ही व्यक्ति सत् है अन्यथा असत्....
संग के लिए पहले व्यक्ति की परीक्षा आवश्यक है,फिर चाहे वो कोई भी होय,महत् कुल में उत्पन्न या साधारण .
संग को निर्णय या प्रकार सू होनो चईये ..
1. श्रीमहाप्रभुजी को आश्रय केवल वाणी सू नही,किन्तु मार्ग में निष्ठा रखके करनो चईये.
2. मार्ग में निष्ठा अपनी थोथी समझ सू नहीं पर मार्ग के गुरू द्वारा कहे गए वचनन के अनुसार रखनी चईये.
3. गुरू के वचनन को अर्थ स्वयं ही नहीं करनो,परन्तु अनुवाद सू समझनो चईये.
4. अनुवाद भी केवल अपनी बुद्धि सू नही परंतु मूल परंपरा के अनुसार करनो चईये.
5. इन सारे प्रकारन में पुनः श्रीमहाप्रभुजी को दृढ आश्रय तो अपेक्षित है ही.
यो वदन्ति अन्यथा वाक्यम् आचार्यवचनात् जनः .
संसृति प्रेरकोवापि तत्संगो दुष्ट संगमः
निरपेक्षः सात्त्विकश्च तत्संगः साधुसंगमः
एवम् निश्चित्य सर्वेषु स्वीयेषु अन्येषु वा पुनः
महत्कुल प्रसूतेषु कर्तव्यः संगनिर्णयः.
श्रीमदाचार्यचरणेमतिः स्थाप्या सदा स्वतः.
ततएव स्वकीयानां सिद्धिः कार्यस्य सर्वथा.
(शिक्षापत्र - ३/८-११)
आप सभी की तरह एक वल्लभीय......